डाटा को रिकवर करने का एक और उपाय data Recovery

डिलीट हो गए डाटा को फिर से प्राप्त करने के लिए एक टूल जो डाटा रिकवरी के लिए कई विकल्प देता है ।
इसमें आप डिलीट हो गयी फाइल फोल्डर्स, फोर्मेट किये हार्ड डिस्क, करप्ट हार्ड डिस्क, मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, सीडी/डीवीडी, ब्लू रे डिस्क और आईपॉड तक से डाटा रिकवर कर सकते हैं ।

एक उपयोगी औजार जो आपके जरुरी डाटा को खोने से बचाता है इसमें डाटा रिकवरी को Undelete Recovery, Damaged Partition Recovery, Lost Partition Recovery, Digital Media Recovery, CD/DVD Recovery श्रेणियों में बांटा गया है ताकि आप आसानी से इसका उपयोग कर सके ।

प्रोग्राम शुरू होने पर I am A home User.... विकल्प चुनकर आप इसे मुफ्त में प्रयोग कर सकते हैं ।

इस उपयोगी टूल का आकार है 5.6 एमबी ।

 इसे डाउनलोड करने यहाँ क्लिक करें ।

 दूसरी सीधी डाउनलोड लिंक यहाँ हैं ।  


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विडियो मिक्सिगं video mixing

पहले आपको avid सॉफ्टवेर के बारे में बताना चाहूँगा बहुत ही आसान और आजकल बहुत ज्यादा उपयोग किया जाने वाला सॉफ्टवेर है
इस सॉफ्टवेर में अलग से बहुत से एफ्फेक्ट का उपयोग किया जाता है इस सॉफ्टवेर का सबसे लोकप्रिय एफ्फेक्ट hollywood fx है जो विडियो में बेहतरीन एफ्फेक्ट देता है
में फिलहाल avid liquid ७.२ का उपयोग कर रहा हु पर इस सॉफ्टवेर के और भी नए संस्करण अ गए है पर आज भी ७.२ संस्करण ज्यादा सरल और ज्यादा उपयोगी लगता है ।
यह software .rar file मे है जिसके 8 टुकडे किये गये हैं ।

part 01  
part 02 
part 03  
part 04  
part o5  
part 06  
part 07  
part 08 



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Duplicate cleaner

Duplicate cleaner

यह सॉफ्टवेर आपके कंप्यूटर के किसी भी तरह के duplicete फाइल को खोज कर निकालती है और आपके कहने पर मिटा भी देती है. किसी भी तरह के फाइल को जैसे की - photos, music, films/video, Word documents, PowerPoint presentations, text files etc . 

download 



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DiskDigger

सभी पाठको को मैरा प्यार भरा प्रणाम
आज मेरे 200 पोस्ट पूरे हो गये ।
और आगे भी जारी रहेगें .......

आज एक और सोफ्टवेयर लेकर आया हूॅ ।

DiskDigger

यह एक recovery सॉफ्टवेर है जो किसी भी हार्ड डिस्क, USB flash drives, memory cards (SD, CompactFlash, Memory Stick, etc) आदि से लगभग सारी फिल्स रेकोवेर कर देता है. यह बुरी तरह से formated डिस्क और यहाँ तक की bad secotr से भी फाइल recover कर लेता है.
यह FAT12 (floppy disks), FAT16 (older memory cards), FAT32 (newer memory cards and hard disks), NTFS (newer hard disks), और exFAT (Microsoft’s new successor to FAT32) सभी तरह के फाइल सिस्टम पर काम करता है.

 यहाॅ से डाउनलोड करें । 



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True Burner ( CD Burner )



सभी सीडी / डीवीडी Blu-रे डिस्क सहित मीडिया प्रकार के लिए burn करता है
* आसान और हल्का जो सिस्टम को ओवर लोड न दे तथा
नेरो का आप्शन

download link 



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Disk Manager Free 1.0.0

आसानी से कार्य करने के लिए बना सॉफ्टवेर है जो आपके हार्ड डिस्क के Partition को mange करता है
इससे आप हार्ड दरिवे किसी भी पार्ट को कम तथा ज्यादा कर सकते है और हटा भी सकते है

डिस्क मेनेजर ,एक पार्टीशन सम्बन्धी यूटिलिटी हे ,इसे किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही प्रयोग करे अन्यथा थोड़ी सी असावधानी होते ही आपकी हार्ड डिस्क के सारे पार्टीशन्स डिलीट हो जायेंगे ओर महत्त्वपूर्ण डेटा नष्ट हो जायेगा |
विंडोज 7 XP / Vista के 32 बिट:

 download link 



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Windows XP Service Pack 3 - ISO-9660

Windows ® XP सर्विस पैक 3 (SP3) ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए सभी पहले जारी किए गए update भी शामिल है.
फ़ाइल नाम: biexpp1210 iso
आकार: 622.88 MB
http://dl.dropbox.com/u/3466273/download.jpg

 download hare 



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CPU-Z

CPU-Z एक फ्रीवेयर है जो आपके सिस्टम के मुख्य उपकरणों में से कुछ पर जानकारी इकट्ठा करके आपको दिखाता है
सीपीयू

* नाम और नंबर.
* कोर कदम और प्रक्रिया.
* पैकेज.
* कोर वोल्टेज.
* आंतरिक और बाह्य घड़ियों, घड़ी गुणक.
* समर्थित अनुदेश सेट.
* कैश जानकारी.

Mainboard

* विक्रेता, मॉडल और संशोधन.
* मॉडल और तारीख BIOS.
* Chipset (Northbridge और Southbridge) और संवेदक.
* ग्राफिक इंटरफ़ेस.

स्मृति

* फ़्रिक्वेंसी और समय.
* मॉड्यूल (ओं) एसपीडी (सीरियल उपस्थिति का पता लगाने) का उपयोग विनिर्देशन: विक्रेता, सीरियल नंबर, समय सारणी.

प्रणाली

* Windows और इंटरनेट संस्करण.

CPU-Z है पता लगाने इंजन अब CPUID सिस्टम सूचना डेवलपमेंट किट, एक पेशेवर माइक्रोसॉफ्ट विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए बनाया एसडीके के माध्यम से अनुकूलित उपयोग के लिए उपलब्ध है.

 download link 



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एक ऐसा सिस्टम जिससे सौ गुना तेज चलेगा इंटरनेट

दो नोबेल पुरस्कार विजेता विज्ञानियों एंड्रे जीम और कोस्ताया नोवोसेलोव ने ग्रेफीन की मदद से एक ऐसा सिस्टम विकसित किया है, जिससे इंटरनेट की रफ्तार सौ गुना तक बढ़ जाएगी।
ग्रेफीन को दुनिया का सबसे पतला मटेरियल माना जाता है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने इसकी मदद से लाइट को कैप्चर करने और उसे बिजली में बदलने का ऐसा तरीका विकसित किया है, जिससे हाई स्पीड इंटरनेट और अन्य दूरसंचार प्रणालियों द्वारा संदेशों के आदान-प्रदान का वर्तमान हुलिया ही बदल जाएगा।
क्या है ग्रेफीन :
वास्तव में ग्रेफीन कार्बन का एक रूप है। आणविक संरचना के क्रम में स्टील से यह सिर्फ एक अणु मोटा, लेकिन मजबूती के मामले में 100 गुना अधिक है। मेटेलिक नैनोस्ट्रक्चर के साथ मिलकर ग्रेफीन 20 गुना अधिक बिजली पैदा कर सकेगा।
क्या है तकनीक :
ग्रेफीन के ऊपर दो मेटेलिक वायर रखने और उन पर प्रकाश डालने से वे एक सोलर सेल में तब्दील हो जाते हैं। इस तरह तैयार उपकरण महज 3 फीसदी लाइट ही अब्जार्व कर पाता है, लेकिन हालिया प्रयोगों ने ग्रेफीन के साथ प्लेसमोनिक नैनो स्ट्रक्चर जोड़ने से लाइट कैपचर करने और उसे बिजली में बदलने की प्रक्रिया में 20 गुना तक इजाफा पाया।
आगे क्या :
इंटरनेट समेत अन्य दूरसंचार सेवाओं से जुड़े उपकरणों की स्पीड को 100 गुना तक बढ़ाया जा सकेगा।



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नई, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी

नई, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी : क्या खाक!
नई, ताज़ातरीन तकनॉलाज़ी ने आपको भी अकसर आकर्षित किया होगा. पर, तकनॉलाज़ी के अद्यतन होते रहने की यह रफ़्तार कभी रुकेगी भी? आखिर आप कब तक नई लेटेस्ट तकनॉलाज़ी से कदमताल मिलाते रहेंगे?

कोई पंद्रह बरस पहले जब मैंने अपने मुहल्ले का पहला पर्सनल कम्प्यूटर अपने जीपीएफ़ के पैसे से एडवांस लेकर खरीदा था तो उस वक्त की लेटेस्ट तकनॉलाज़ी के लिहाज से 14 इंची कलर मॉनीटर युक्त, 16 मेबा रैम व 1 जीबी हार्ड डिस्क युक्त, 433 मे.हर्त्ज का कम्प्यूटर था, जो उस वक्त के लिहाज से बहुत बड़ी कीमत में आया था.

मैं अपनी उस लेटेस्ट तकनॉलाज़ी युक्त कम्प्यूटर की शक्ति से खासा प्रभावित था और चूंकि वो मेरे मुहल्ले का एकमात्र व पहला कम्प्यूटर था, अतः उसकी अच्छी खासी धाक भी थी. लोग-बाग़ सिर्फ उसके दर्शन करने आते – एक दूसरे से चर्चा करते - कलर मॉनीटर वाला कम्प्यूटर है – मल्टीमीडिया वाला, जिसमें गाने भी सुन सकते हैं और फिल्म भी देख सकते हैं. एकदम नेबर्स एन्वी, ओनर्स प्राइड वाला मामला था.

मगर, जल्द ही परिस्थितियाँ बदल गईं. उम्मीद से पहले. पड़ोस का कोई बंदा नया लेटेस्ट तकनॉलाज़ी वाला, 450 मे.हर्त्ज युक्त, एमएमएक्स तकनॉलाज़ी वाला, 32 मेबा रैम युक्त, 2 जीबी हार्डडिस्क सहित, डिजिटल कलर मॉनीटर वाला डेस्कटॉप कम्प्यूटर ले आया. मजे की बात ये कि वो इस नए, ताज़ा, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी वाले, ज्यादा उच्च शक्ति वाली मशीन को उसने अपेक्षाकृत कम पैसे में खरीदा. अब, जाहिर है, जलने की बारी मेरी थी.

कुछ और समय बीतते न बीतते हुआ ये कि हार्डवेयरों और सॉफ़्टवेयरों में नई, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी के लगातार पदार्पण के चलते मेरे कम्प्यूटर ने नए अनुप्रयोगों को चलाने से मना कर दिया और उसका हार्ड डिस्क गले तक भर भर कर मर खप गया. मजबूरी में मुझे पेंटियम 3 श्रेणी का 1.6 गीगा हर्त्ज प्रोसेसर, 256 मेबा रैम व 20 जीबी हार्डडिस्क वाला कम्प्यूटर खरीदना पड़ा. ये भी, उस वक्त के लिहाज से लेटेस्ट था. मैं और मेरा कम्प्यूटर फिर से एकबार लेटेस्ट हो चुके थे. तमाम क्षेत्र में महंगाई के रोने के बावजूद मैंने इसे अपनी पहली मशीन की कीमत से आधे कीमत में खरीदा.

कुछ अरसा बीता ही था कि चहुँओर आईटी और कम्प्यूटरों ने जोर मारा तो पूरे मुहल्ले में पेंटियम 4 की धूम मच गई. अब जो भी कम्प्यूटर लाता, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी युक्त पेंटियम 4 की मशीन लाता. रैम 1 जीबी से कम नहीं. हार्डडिस्क तो 120 जीबी तक चली गई. एक बंदा 250 जीबी हार्डडिस्क वाली, 17 इंच एलसीडी मॉनीटर युक्त लेटेस्ट मशीन लाया तो उत्सुकता वश मैं भी उसे देखने गया. उस भारी भरकम लेटेस्ट मशीन को छूकर देखने से कुछ अलग सा अहसास हुआ. और, ये मेरे कुछ महीने पहले खरीदे गए इससे आधी शक्ति और कॉन्फ़िगुरेशन वाले लेटेस्ट मशीन से सस्ता ही था.

इस बीच मुझे एक लैपटॉप की जरूरत पड़ी तो मैंने लेटेस्ट 64 बिट प्रोसेसर युक्त मशीन खरीदा था. ये मशीन इतना लेटेस्ट निकला था कि कंपनी के पास इसमें डालने के लिए 64 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम ही कम्पेटिबल नहीं था, लिहाजा कंपनी ने इसमें 32 बिट ऑपरेटिंग सिस्टम डाला हुआ था.

अभी गुजरे धनतेरस पर मैंने सोचा कि कुछ लेटेस्ट गॅजेट या नेटबुक खरीदा जाए. बहुत दिनों से लेटेस्ट तकनॉलाज़ी का कुछ खरीदा नहीं था. वैसे विंडोज विस्ता ने बहुतों को लेटेस्ट तकनॉलाज़ी की मशीन ले लेने के लिए मजबूर कर दिया ही था, परंतु धन्य है कि वो स्वयं ही फेल हो गया बेचारा. मैंने नेटबुक के लिए लेटेस्ट तकनॉलाज़ी वाले मशीन की तलाश की. पता चला कि छः माह पहले सोलह हजार में जो मशीन जितने रुपए में मिल रही थी, उससे कम कीमत में उससे ज्यादा अच्छी मशीन आज मिल रही है. मैंने नेटबुक में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में कुछ अता-पता किया तो पता चला कि अभी जो मशीनें मिल रही हैं, उनमें कोल्ड कैथोड का प्रयोग होता है. नई आने वाली मशीनों में बैक लाइट के लिए कोल्ड कैथोड के बजाए एलईडी का प्रयोग होगा जिससे मशीनें बिजली कम खाएंगी और इनकी बैटरी की उम्र भी ज्यादा होंगी. नई मशीनों में 120 जीबी तक सॉलिड स्टेट डिस्कें होंगी. मैंने लेटेस्ट तकनॉलाज़ी के आते तक अपनी यह खरीद मुल्तवी रखी है. देखें, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी और क्या-क्या लेटेस्ट लाती है – वो भी सस्ते में! मोबाइल फ़ोनों की बात तो आप पूछिए ही मत. मेरे अब तक के आधे दर्जन, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी युक्त मोबाइल फोन दुकान से खरीद कर नीचे उतरते ही लेटेस्ट तकनॉलाज़ी के कारण पुराने पड़ गए तब से मैंने अपने मोबाइल (को अद्यतन करने) की ओर झांका भी नहीं है.

इस बीच आशा ने फ़रमाइश की कि अपना 21 इंची सीआरटी टीवी पुराना हो गया है (जबकि वो महज चार साल पहले आया है, और जब आया था, तो लेटेस्ट तकनॉलाज़ी युक्त फ्लैटस्क्रीन वाला था) उसे बदल कर नया 29 इंची बड़ी स्क्रीन का टीवी ले आते हैं. पड़ोस में 29 इंची, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी का टीवी जो आ चुका था, अत: बच्चों को भी इस छोटी स्क्रीन में टीवी सीरियल देखने में उतना मजा नहीं आ रहा था. इससे भी बड़ी बात ये थी उनके लिहाज से तकनॉलाज़ी में पुराने पड़ चुके 21 इंची टीवी को ड्राइंग रूम में रखना शर्म की बात थी. अलबत्ता घर का सेकंड टीवी हो तो उसे घर में रखा जा सकता है. लिहाजा, मैंने नए, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी वाले टीवी के बारे में मालूमात किए तो पता चला कि एलसीडी स्क्रीन वाले 27 इंची टीवी लेटेस्ट तों हैं. परंतु इनसे भी अधिक लेटेस्ट तकनॉलाज़ी के, ओएलईडी, प्लाज़्मा और पेपर थिन तकनॉलाज़ी के उत्पाद आ रहे हैं और आने वाले हैं. मैं किसी बढ़िया कम्पनी का बढ़िया, लेटेस्ट तकनॉलाज़ी का एलसीडी टीवी पसंद करता इससे पहले ही मेरी नज़र इस खबर पर पड़ी कि सैमसुंग ने कार्बन नैनोट्यूब युक्त रंगीन ई-पेपर नामक डिस्प्ले बनाया है जिससे टीवी देखने का अंदाज ही बदल जाएगा. मैं घर में बीवी-बच्चों को मनाने में लगा हुआ हूं कि भई लेटेस्ट तकनॉलाज़ी की ये टीवी आने दो, ले लेंगे.

परंतु फिर, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मुझे लगता है – लेटेस्ट तकनॉलाज़ी – क्या खाक!



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सावधान: ज्यादा मैसेज करना सेहत के लिए खतरनाक






अगर आपको भी एसएमएस करना और पढ़ना अच्छा लगता है तो ये खबर को ध्यान से पढ़ लें। क्योंकि ये खबर आपकी होश उड़ा सकता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि हद से ज़्यादा एसएमएस की लत आपको डिप्रेशन का शिकार बना सकती है। इससे आपकी याददाश्त तक कमज़ोर हो सकती है। रिसर्च के मुताबिक हद से ज्यादा एसएमएस करने से टेक्स्टाफ्रेनिया, टेक्स्टाइटी, पोस्ट ट्रॉमैटिक टेक्स्ट डिसऑर्डर और मॉन्स्टर थंब जैसी बीमारियां हो सकती हैं। टेक्स्टाफ्रेनिया के मामले में मरीज को हर वक्त ये एहसास होता है कि उसका एसएमएस आया है और वो बार-बार अपना मोबइल देखता रहता है। जबकि वाकई में कोई एसएमएस नहीं आया होता है। मरीज़ को लगता है कि उसके मोबाइल का मैसेज टोन बज रहा है। लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है।


टेक्स्टाइटी के मरीज़ को हर वक्त ऐसा लगता है कि उसे कोई एसएमएस नहीं करता है और ना ही वो किसी को एसएमएस कर पा रहा है। इन दोनों ही मामलों में मरीज़ भावनात्मक तौर पर खुद को अकेला पाता है और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। जबकि पोस्ट ट्रॉमैटिक टेक्स्ट डिसऑर्डर के मामले में मरीज को शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मसलन मरीज एसएमएस करते वक्त उस भावना को जीने लगता है और हकीकत का एहसास होते ही खुद को अकेला पाता है।



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माइक्रो चिप अंतत: अपने चरम पर

50 सालों के निरंतर प्रयास और सुधारों के बाद कंप्यूटर की दुनिया में क्रांतिकारी परिवर्तन का माध्यम बना माइक्रो चिप अंतत: अपने चरम पर पहुंच गया है।

पचास साल पहले 25 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर राबर्ट नोयसी को पहले सिलिकॉन माइक्रोचिप का पेटेंट मिला था। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, दशकों बाद हम अभी भी उस क्रांति में जी रहे हैं जो लगभग अभी शुरू हुई है लेकिन जिसमें बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं।

इस मामले में मूर का नियम लागू हो रहा है जिसके अनुसार हर दो साल में ट्रांजिस्टर की संख्या दोगुनी होती जा रही है।
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के दिग्गज माइक्रोचिप विशेषज्ञ स्टीव फर्बर का कहना है कि माइक्रोचिप में सुधार की गति अब धीमी होती जा रही है।
अगले दस साल में इसके विकास की सारी सीमाएं खत्म हो जाएंगी।



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सावधान! फेसबुक पर डेरा जमाए हैं ठग



सावधान! फेसबुक पर डेरा जमाए हैं एक करोड़ ठग
नई दिल्ली। क्या आप फेसबुक के जरिए किसी चैरिटी में लेते हैं हिस्सा? क्या आप फेसबुक पर ऑनलाइन सर्वे में दिखाते हैं दिलचस्पी? क्या आप फेसबुक पर अनजान लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट कर लेते हैं कबूल? तो हो जाइए सावधान। खतरे की घंटी बज चुकी है। फेसबुक पर आपकी जरा सी लापरवाही आपको बड़ी मुसीबत में डाल सकती है। आप हो सकते हैं ठगी के शिकार क्योंकि फेसबुक पर घात लगाकर बैठे हैं एक करोड़ ठग। जी हां, सुनकर हैरान होना लाजिमी है लेकिन हकीकत यही है।

दुनिया भर में 14 करोड़ से ज्यादा फेसबुक यूजर हैं। भारत में भी करीब 1 करोड़ 65 हजार लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं। और इन 14 करोड़ में से एक करोड़ फेसबुक यूजर फर्जी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन सर्वे और चैरिटी को जरिया बनाकर ये ठग जबरदस्त कमाई कर रहे हैं। आईटी सिक्योरिटी एंड डाटा प्रोटेक्शन फर्म सोफोस की एक रिपोर्ट की मानें तो एक लाख 65 हजार से ज्यादा फेसबुक यूजर एक खास वेबसाइट लिंक का शिकार हो चुके हैं जिसका नाम है हू ब्लॉक्ड यू फ्रॉम हिज फ्रेंड लिस्ट।



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ऑक्सीजन के कण अंतरिक्ष में मिले

पासाडेना यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) के हर्शेल स्पेस ऑब्जर्वेट्री ने अंतरिक्ष में ऑक्सीजन के अणु खोजे हैं। अंतरिक्ष में पानी की मौजूदगी की पुष्टि के 15 दिनों के अंदर ही अंतरिक्ष विज्ञानियों को दूसरी बड़ी सफलता मिली है। अंतरिक्ष में जो ऑक्सीजन कण (ओ-२) मिले हैं वह इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे प्राणवायु के निर्माता हैं। इन्हीं ऑक्सीजन कणों से पृथ्वी पर प्राणवायु का २ फीसदी हिस्सा तैयार होता है। पासाडेना स्थित नासा के जेट प्रोप्लशन लेबोरेट्री में हर्शेल प्रोजेक्ट पर लगे वैज्ञानिक डॉ. पॉल गोल्डस्मिथ और ईएसए के वैज्ञानिक गोरान पिलब्रैट कहते हैं कि हम जितना उम्मीद कर रहे थे उससे कम ऑक्सीजन है, पर इस बात की पुष्टि हो गई है कि अंतरिक्ष में ऑक्सीजन की मौजूदगी है। जिसे इंसान खोज नहीं पा रहे हैं।
1500 प्रकाश वर्ष दूर मिले:- ये कण पृथ्वी से खुली आंखों से दिखने वाले और १५ प्रकाश वर्ष दूर ओरियन तारामंडल में मिले। हर्शेल स्पेस ऑब्जरवेटरी के हाईफाई फार-इन्फ्रारेड यंत्र को ओरियन तारामंडल की तरफ केंद्रित किया गया। पता चला कि वहां एक तारे का निर्माण हो रहा है। उसके चारों तरफ गैस और धूल के बादल हैं। तीन विभिन्न इन्फ्रारेड फ्रिक्वेंसी का प्रयोग करने पर ये पता चला कि वहां पर हर दस लाख हाइड्रोजन कणों के बीच ऑक्सीजन का एक जुड़वां कण है।
कैसा दिखा ओ-2:- ओरियन तारामंडल के निर्मित हो रहे तारे के बीच ऑक्सीजन के दो परमाणु आपस में जुड़े हुए दिखाई दिए हैं। वैज्ञानिकों ने संभावना जताई है कि ऑक्सीजन परमाणु ठंडे होकर बहुत ही छोटे धूल के कणों के आकार में तब्दील हो गए होंगे। इसके बाद वे अंतरिक्ष की ठंडक की वजह से बर्फ के कणों में बदलकर तैर रहे होंगे। अगर ये संभावना सच होती है तो वे जब भी गर्म हिस्से में आएंगे, वे गैस के रूप में बदलकर बादलों जैसे दिखाई पड़ेंगे। किसी भी बड़े तारे या ग्रह के आसपास ऑक्सीजन के एक कण की मौजूदगी आम बात है पर उन कणों का मिलना बड़ी बात है जो हमारे लिए हवा का 20 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। जो कण मिले हैं वह पृथ्वी पर प्राणवायु के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंतरिक्ष में इनका मिलना बड़ी उपलब्धि है। —

डॉ. पॉल गोल्डस्मिथ



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अन्य ग्रहों के प्राणी से होगी मुठभेड़

रूसी वैज्ञानिकों ने संभावना व्यक्त की है कि बार-बार धरती पर दस्तक देकर एक रहस्य छोड जाने वाले बाहरी ग्रह के प्राणियों से 2031 तक पृथ्वी पर मनुष्य की सीधी मुठभेड हो जाएगी। रूस की सरकारी संवाद समिति इंटरफैक्स ने रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष संस्थान के एक शीर्ष वैज्ञानिक के हवाले से खबर दी है कि पृथ्वी से इतर अन्य ग्रहों पर निश्चित रूप से जीवन है और संभावना है कि धरती के मनुष्य का अगले दो दशकों में उन प्राणियों से आमना सामना हो जाएगा।
ज्ञातव्य है कि आकाशगंगा में हमारे सौरमंडल के अतिरिक्त भी अनगिरत सौरमंडलों है जिनके अपने अपने सूर्य है।
अंतरिक्ष संस्थान के निदेशक एवं प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक एंडी पिंकेलस्तीन ने कहा कि इन बाहरी सौरमंडलों में अपने अपने सूर्य की परिक्रमा करने वाले ज्ञात ग्रहों में से 10 प्रतिशत पृथ्वी जैसे ही है। उन्होंने कहा कि यदि उन ग्रहों पर पानी है तो फिर वहां जीवन होने की पूरी-पूरी संभावना है।
उनका कहना है कि बाहरी ग्रहों के प्राणियों के भी पृथ्वी के मनुष्य की तरह ही दो हाथ दो पांव और एक सिर है। उन्होंने कहाकि हो सकता है कि उनकी चमडी का रंग अलग हो लेकिन इस तरह की विविधता तो पृथ्वी के मनुष्यों में भी विद्यमान रहती ही है। उन्होंने कहा कि उनका संस्थान अन्य ग्रहों पर जीवन की मौजूदगी का पता लगाने के काम में पूरी तरह से जुटा हुआ है और अगले 20 वर्षो में यह रहस्य पूरी तरह से खुल जाने की संभावना है|

 http://www.arthmedianetwork.com/images/newsimages/9/img_3_img_26218.jpg 



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कैसे काम करता है परमाणु संयंत्र

जापान में हुई प्राकृतिक आपदा के बाद नाभिकीय ऊर्जा के लिए बनाए जा रहे परमाणु संयंत्रो में हुए रेडिएशन लीक के खतरे ने सभी का ध्यान अपनी और खींचा है। सभी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर परमाणु संयंत्र काम कैसे करते हैं।

नाभिकीय उर्जा बनाने के लिए परमाणु संयंत्र के रिएक्टर में लगी फ्युल रॉड्स विखंडन से प्लांट में भारी मात्रा में उष्मा पैदा की जाती है। फिर इस उष्मा से वॉटर रिएक्टर में इकट्ठा किए गए पानी को गर्म किया जाता है। इस के जरिए पानी को क्वथनांक तक गर्म कर भाप उत्पन्न की जाती है। इस भाप को प्लांट से टर्बाइन तक पाइपों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। इस भाप की ताकत से टरबाइन को घुमाया जाता है जिससे बिजली पैदा होती है। पर इस प्रकिया में परमाणु विखंडन को नियंत्रित करने के लिए या तापमान को नियंत्रित करने के लिए फ्युल रॉड्स के बीच कंट्रोल रॉड्स डाली जाती हैं। कंट्रोलिंग रॉड्स ऐसे पदार्थों से बनी होती है जो विखंडन प्रक्रिया में मुक्त हुए अतिरिक्त न्यूट्रॉन को तुरंत अवशोषित कर लेते हैं।
इसके साथ ही गर्म पानी को शक्तिशाली पम्प के जरिए लगातार बाहर निकाला जाता है और ताजा व ठंडा पानी कोर रिएक्टर में सप्लाय किया जाता है। बची हुई भाप कूलिंग टॉवर के जरिए बाहर निकल जाती है। ताजे पानी की सतत सप्लाय तथा कंट्रोलिंग रॉड्स से रिएक्टर का तापमान नियंत्रण में रखा जाता है। यह रिएक्टर की कूलिंग प्रणाली होती है। इस पूरे प्लांट को बेहद मजबूत कांक़्रीट की दीवार के भीतर रखा जाता है।

किसी दुर्घटना और अन्य कारण से अगर संयंत्र की बिजली आपूर्ति बाधित होती है, तो कूलिंग प्रणाली के ठप्प होने से तापमान अनियंत्रित हो जाता है। परिणाम यह होता है कि फ्युल रॉड्स में अनियंत्रित विखंडन से उत्पन्न अत्यधिक तापमान की वजह से रिएक्टर पिघलना शुरू हो जाता है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से उच्च दाब के कारण प्लांट में शक्तिशाली धमाका होता है जो रेडियोधर्मी विकिरण को दूर तक वातावरण में फैला देता है।



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अमर हो जाएगी मनुष्य जाति ????????

टाइम पत्रिका के ताजा अंक में कवर स्टोरी के रूप में यह बात विविध वैज्ञानिक अनुसंधानों, पिछले इतिहास और आगे की संभावनाओं की पड़ताल करने के बाद कही गई है। मनुष्यत्व को सिंगुलेरिटी जैसी अवधारणा को प्राप्त करने में बस कुछ ही दशक शेष हैं! सिंगुलेरिटी उस स्थिति को कहते हैं जहाँ आम भौतिकी के नियम लागू नहीं होते, जैसे कि ब्लैक होल में।
वैज्ञानिक रेमंड कुर्जवेल, जिनके खाते में 39 पेटेंट हैं, 19 ऑनरेरी डॉक्टरेट, 1999 के यूएसए नेशनल टेक्नोलॉजी मैडल से पुरस्कृत हैं, अपनी किताब ‘द सिंगुलेरिटी इज नियर’ में कुछ इसी तरह की बात कहते हैं। वे पिछले 20 वर्षो से वैज्ञानिक के साथ-साथ वैज्ञानिक-भविष्यवेत्ता को करियर के रूप में अपनाए हुए हैं और उनकी कई भविष्यवाणियाँ समय के साथ सटीक बैठी हैं।
कंप्यूटिंग भविष्यवाणियाँ
कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी को लेकर रेमंड कुर्जवेल की कुछ दिलचस्प भविष्यवाणियाँ हैं।
- 2015 में कंप्यूटरों में चूहे के मस्तिष्क के जितनी क्षमता आ जाएगी।
- 2023 में कंप्यूटरों में मनुष्य के दिमाग जितनी कृत्रिम बुद्धि विकसित हो जाएगी।
- 2045 में कंप्यूटरों में तमाम विश्व के समस्त मानवों के मस्तिष्क की क्षमताओं के सम्मिलित क्षमता जितनी ताकत आ जाएगी और तब, मशीनें क्या कुछ करेंगी, सोचें! दरअसल, इस भविष्यवाणी के पीछे टेक्नोलॉजी की अब तक की चाल के इतिहास का गहरा अध्ययन रहा है। कंप्यूटिंग पावर आज की स्थिति में हर घंटे उतनी तेजी से बढ़ रहा है जितनी कि यह अपने शुरुआती समस्त 90 वषों में बढ़ा है। दूसरे शब्दों में, पिछली सदी भर की समस्त कंप्यूटिंग ताकत को हम आज महज एक घंटे में पा ले रहे हैं और यह ताकत बढ़ रही है।
अमरत्व का प्रथम पग:-रेमंड कुर्जवेल अभी 62 वर्ष के हैं और उनका मानना है कि वे बायोलॉजिकली, 20 वर्ष छोटे हैं यानी उनकी शारीरिक अवस्था, शारीरिक अंगों-अवयवों की क्षमता और अवस्था सिर्फ 42 वर्ष के व्यक्ति जितनी ही है। उनके जीन में जन्मजात डायबिटीज टाइप 2 के अवयव थे, परंतु 62 वर्ष की उम्र में उनमें डायबिटीज के लक्षण नहीं हैं। वे दीर्घायु देने वाली दवाइयों के विशेषज्ञ टैरी ग्रासमैन के साथ काम कर रहे हैं और विशेष सप्लीमेंट युक्त आहार और दवाइयां ले रहे हैं।
इधर शोधकर्ताओं ने टेलोमीरास नामक एक एंजाइम का पता लगाया है जो मनुष्यों में बुढ़ापे की प्रक्रिया को लगाम लगाता है। हारवर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने बूढ़े चूहों को यह एंजाइम दिया तो चूहों में न सिर्फ बुढ़ापे की रफ्तार रुकी बल्कि कुछ मायनों में बुढ़ापे की बयार उलटी चली और चूहे अपेक्षाकृत युवा हो गए और, जाहिर है, अब प्रयोग की बारी मनुष्यों की है।
कृत्रिम अंग:-अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी के प्रयोग से मनुष्य के जीवन के महत्वपूर्ण अंगों, मसलन हृदय और किडनी के कृत्रिम, मशीनी रूप बना पाने में सफलता हासिल हो चुकी है। स्टेम सेल थेरेपी से मनुष्य के मर चुके या खराब हो चुके अंगों में नवजीवन देने की चिकित्सकीय पद्धति हाल में प्रकाश में आई और चहुँओर इनमें नए-नए आयाम प्राप्त होने की खबरें मिल रही हैं। इस तरह से मनुष्य के थके, बूढ़े हो रहे अंगों में स्टेम सेल चिकित्सा पद्धति से नया जीवन भर उनमें नवजीवन प्रदान कर अथवा मशीनी कृत्रिम अंगों की सहायता से मनुष्य की आयु को अकल्पनीय रूप से लंबा खींचा जा सकेगा।
विरोध के स्वर:-मनुष्य के अमरत्व की अवधारणा आसानी से पचती नहीं। जीवविज्ञानी डेनिस ब्रे का कहना है कि जीवों की कोशिकाओं में वातावरण के लिहाज से बदलने की अपार संभावनाएं होती हैं। भविष्य के लिहाज से अपने आप को तैयार करने में वे पूरी तरह से सक्षम होती हैं और इससे संबंधित जानकारियों को अपने में समेटने की भी अपार, अनंत क्षमता होती है। हर जीवित वस्तु का एक जीवन चक्र होता है।
अमरत्व की ओर पहला कदम:-जो भी हो, जैसे जैसे मनुष्य सभ्य होता गया है, दीर्घायु होता गया है। मनुष्य के पास स्वास्थ्य, स्वच्छता, रहनसहन की जैसे-जैसे तमाम सुविधाएं जुड़ती गई हैं, उसकी आयु बढ़ती गई है। वर्ष 1900 के दौरान मनुष्य की वैश्विक औसत आयु (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) मात्र 30 वर्ष थी, जो आज 64 वर्ष तक पहुँच गई है। यह भी एक तरह का अमरत्व नहीं तो और क्या है।



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