लुभावने ब्लॉग विजेट के चक्कर मे ना पङे।



इस पोस्ट को लिखने के पिछे कुछ बहुत हि महत्वपूर्ण कारण है। पहला कारण- मेरे ब्लॉग Computer mobile Tips & triks के खराब होने का कारण। दुसरा कारण- आपको भी अपने ब्लाग के प्रति सचेत करने का कारण। इसलिए आज मैँ आपको सचेत करना चाहता हु कि कही आप भी मेरी तरह अपने ब्लॉग को खराब न कर बैठे। मेरे ब्लॉग के खराब होने का कारण अनचाही वेबसाइट से लुभावने विजेट को अपने ब्लॉग पर लगाना है। मै एसे ही साइटो पर घुमते हुए एक एसी साइट पर पँहुचा जहा पर मैने एक विजेट देखा जिसका काम था सभी पोस्ट को लेबल के हिसाब से बाँटकर अलग-अलग दिखाना और नये प्रकाशित पोस्ट के आगे New लिखा होना। उस विजेट को मेरे ब्लॉग पर लगाते हि मैने दो-तीन दिन मे देखा कि मेरे पोस्ट देखने कि संख्या अचानक से रुक गई है, पहले तो मेरे समझ मे नही आया लेकिन फिर मैने वेबमास्टर टुल मे जाँच कि तो पता चला कि मेरे ब्लॉग मे "मालेवर" से सम्बन्धित चार लिँक है। जिसकि वजह से गुगल ने इसको Show करवाना बन्द कर दिया। फिर मैनेँ उन लिँको को डिलिट कर दिया जिनमे से सिर्फ तीन लिँक हि डिलिट हुए जो मेरे पोस्ट के लिँक थे लेकिन एक लिँक उनमे मेरे उस ब्लॉग का लिँक था जो डिलिट नही हो पाया। इसलिए अभी भी उसमे मालेवर डिटेक्ट बता रहा है। इसलिए मैँ नही चाहता कि आप भी किसी लुभावने विजेट के चक्कर मेँ पङे और अगर आप किसी साईट से विजेट लगा रहे है तो पहले उस साइट कि जाँच कर ले।



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डाउनलोड किजिए ब्लॉग टेम्पलेट


दोस्तो आपने बहुत से ब्लॉग पर देखा होगा जिनका टेम्पलेट बहुत हि लुभावना और सुन्दर होता है।
ये टेम्पलेट डाउनलोड करके लगाए जाते है, अब आप भी अपना मनपसंद टेम्पलेट अपने ब्लॉग पर लगा सकते है।
क्योकि आज मैँ आपके लिए एक एसी वेबसाईट लेकर आया हु जिस पर ब्लॉग टेम्पलेट का भण्डार है
मेरे ब्लॉग का टेम्पलेट भी इसी साइट से लिया गया है, जिसका नाम Iphone hello है। इन टेम्पलेट्स को लगाना बहुत हि आसान है-

1. सबसे पहले टेम्पलेट डाउनलोड किजिए जो zip, rar फाईल होगी जिसे Unzip किजिए।

2. उसके बाद अपने ब्लॉग के डेशबॉर्ड पर जाइए और Template पर क्लिक किजिए।

3. अब Download/Restore पर क्लिक किजिए तो आपके सामने छोटा सब विण्डो खुलेगा जिसमे Browse बटन पर क्लिक करके उस Unzip XML फाईल को चुन लिजिए जिसको आपने डाउनलोड करके unzip किया था।

4. अब अपलोड पर क्लिक किजिए.... कुछ देर इन्तजार किजिए। आपका ब्लॉग टेम्पलेट सफलता पूर्वक स्थापित हो जाएगा।
नीचे मैँ ब्लॉगर टेम्पलेट को डाउनलोड करने के लिँक दे रहा हुं जिनको आप यहां से  डाउनलोड  कर सकते है



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आप भी किजिए OneNineFive का इस्तेमाल

जी हा दोस्तो अब आप भी किजिए वन नाइन फाइव का इस्तेमाल। वन नाइन फाइव कोई और चिस नही बल्कि एक बेहतरिन साइट है। इस साईट मे आप भारत के छोटे से छोटे गाँव को भी सर्च कर सकते है। यह सर्च किए गए गाँव या शहर का इतिहास बताती है कि यह कैसे बना, कब बना तथा इसमेँ कितनी स्कुल-कॉलेज है, और अन्य भी बताये जाते है। इस साइट मे एक बेहतरीन सुविधा यह भी हे कि इसमे आप देश चुनेँगे तो आपको राज्य चुनने होँगे फिर जिला फिर शहर और फिर आपको गाँवो मे से चुनना होँगा। तथा इस पर आप अलग से सर्च कर सकते है। वन नाइन फाइव वेबसाइट पर जाने के लिए
 यहाँ क्लिक किजिए। 



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पेन ड्राइव को रैम बनाएं शोफ्टवेयर के द्वारा



eBoostr ™, पेनड्राइव द्वारा आपके अपने कम्प्यूटर की गति को बढ़ाने के लिए एक वैकल्पिक समाधान है और
जो SuperFetch प्रौद्योगिकियों को ReadyBoost के रूप में काम करने के लिए फ़्लैश मेमोरी का उपयोग करता
है। एक बहुत ही उन्नत और उपयोगी औजार है।

यह आपके PC की गति और प्रदर्शन क्षमता बढ़ाने के लिए एक अतिरिक्त परत के रूप में फ़्लैश मेमोरी और मुक्त
रैम का प्रयोग करता है जिससे आपके PC के लिए कैश मेमोरी में बढ़त होती है। अधिकतम चार सस्ती पेन ड्राइव
आपके कम्प्यूटर की गति को आश्चर्य जनक रूप से तीव्र बना देंगी और आपको मँहगी RAM नहीं ख़रीदनी पड़ेगी।

Vista ReadyBoost है और SuperFetch लाभ अब आपके Windows XP PC पर;
अधिक तेज़ कम्प्यूटर और अधिक प्रयोग किए जा रहे साफ्टवेयर के लिए फाइलों की कैशिंग;
दोनों USB और Non-USB (हटाये जा सकने वाले मीडिया उपकरणों (CF, एसडी / SDHC,
         MMC,और अन्य मेमोरी कार्ड का) के साथ उपयोग में लाया जा सकता है, साथ ही साथ अतिरिक्त
         हार्ड डिस्क(xD) के साथ भी काम करता है;
अधिकम 4 USBs के साथ स्मार्ट कैशिंग की अनुमति देता है;
HD के फाइल सिस्ट्म का कैशिंग आकार 4GB तक हो सकता है; NTFS आकार पर कोई सीमा नहीं है
सभी "ReadyBoost" उपकरणों के साथ काम करता है यानि 'Enhanced for ReadyBoost' को support करता है

 download link 



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ऑटोरन वाईरस से बचाव की ट्रिक




दोस्तों आज मैं आपको एक आसान सा उपाय बताने जा रहा हूँ। जब भी हम कंप्यूटर में  कोई पेन ड्राइव कनेक्ट करते है या  सी.डी. इन्सर्ट करते है तो यह अपने आप स्टार्ट हो जाते है।
जिससे यह होता है की कई बार पेन ड्राइव में ऑटोरन वाईरस मौजूद होता है और अपने आप रन हो जाता और यह वाईरस आपके कंप्यूटर को नुक्सान पहुँचता है। इससे बचने का तरीका यह है की आप जब भी पेन ड्राइव कनेक्ट करे तो स्टार्ट होने से पहले आप शिफ्ट  कुंजी दबा कर रखे, इससे पेन ड्राइव अपने आप स्टार्ट नहीं होगी। और इसके बाद  आप अपने एंटीवायरस से अपने पेन ड्राइव को स्कैन कर के खोले | तो दोस्तों यह रही एक आसान सी ट्रिक इसे उपयोग करके देखे।



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अपना फोन रूट करने से पहले ध्यान में रखें ये बातें

अक्सर आपने फोन रूट करने से जुड़ी कई खबरें सुनी होंगी, फोन को रूट करने से मतलब है आप उसके सॉफ्टवेयर में सेंध लगाकर उसे जैसा चाहे वैसा बना लें।
ये थोड़ा टेक्निकल जरूर है मगर जहां इसके कई फायदे हैं वहीं इसके नुकसान भी हैं।


हालाकि काफी कम लोग अपने स्मार्टफोन को रूट करते हैं। फोन को रूट करने के बाद आप इसके सीपीयू, रैम, एसडी कार्ड ऑप्शन के अलावा कई दूसरे फीचरों पर कंट्रोल कर सकते हैं।
अगर आप अपने फोन को रूट करना चाहते हैं तो उससे पहले कुछ जरूरी बातों का ध्यान हमेशा रखें।

1.
फोन रूट करने के बाद अगर आप अपने फोन के फीचरों को अपग्रेड करना नहीं जानते तो आपको फोन किसी काम का नहीं रहेगा।
क्योंकि एक बार नए ऑप्शन को हटाने के बाद दोबारा उसे फिर से इनेबल नहीं किया जा सकता।

2.
फोन रूट करने के बाद आपको एंड्रायड का लेटेस्ट वर्जन मिलता है,
मगर एंड्रायड जो भी ऑफीशियल अपडेट करेगा उसे आप अपने फोन में नहीं कर सकेंगे।

3.
रूट करने के बाद आपके फोन की वारंटी चली जाती है फिर भले ही आपने अपना फोन 1 दिन पहले ही क्यों न लिया हो।

4.
फोन रूट करने के बाद आपके फोन में बग आने का खतरा बढ़ जाता है,
यानी कोई भी आपके फोन को आसानी से हैक कर सकता है।

5.
रूट करने के बाद किसी भी डिवाइस की परफार्मेंस पर असर पड़ता है,
फोन कुछ दिनों तक तो अच्छी परफार्मेंस देता है मगर समय के साथ ये काफी स्लो हो जाता है

6.
आपका फोन स्पाईवेयर और एडवेयर के चपेट में आ सकता है जो फोन में सेव डेटा के लिए काफी बड़ा खतरा है।

7.
फोन रूट करने के बाद आप एंड्रायड की जेन्युन यूजर लिस्ट से बाहर चले जाते हैं।

8.
फोन को रूट करने के लिए कई सॉफ्टवेयर ऑनलाइन मिलते हैं मगर इनमें से कुछ सॉफ्टवेयर इसे बनाने वाले को फायदा देने के लिए अपडेट देते रहते हैं।

9.
फोन रूट करने के बाद आपके फोन की ओरीजनल भाषा बदल सकती है।

10.
ऑनलाइन रूटिंग सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने से पहले उसके नीचे दिए गए नोटिस को जरूर पड़े जिसमें लिखा रहता है रूट होने के बाद डिवाइस में जो भी होगा उसकी जिम्मेदारी उनकी नहीं होगी।



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सावधान: ज्यादा मैसेज करना सेहत के लिए खतरनाक






अगर आपको भी एसएमएस करना और पढ़ना अच्छा लगता है तो ये खबर को ध्यान से पढ़ लें। क्योंकि ये खबर आपकी होश उड़ा सकता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट बताती है कि हद से ज़्यादा एसएमएस की लत आपको डिप्रेशन का शिकार बना सकती है। इससे आपकी याददाश्त तक कमज़ोर हो सकती है। रिसर्च के मुताबिक हद से ज्यादा एसएमएस करने से टेक्स्टाफ्रेनिया, टेक्स्टाइटी, पोस्ट ट्रॉमैटिक टेक्स्ट डिसऑर्डर और मॉन्स्टर थंब जैसी बीमारियां हो सकती हैं। टेक्स्टाफ्रेनिया के मामले में मरीज को हर वक्त ये एहसास होता है कि उसका एसएमएस आया है और वो बार-बार अपना मोबइल देखता रहता है। जबकि वाकई में कोई एसएमएस नहीं आया होता है। मरीज़ को लगता है कि उसके मोबाइल का मैसेज टोन बज रहा है। लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है।


टेक्स्टाइटी के मरीज़ को हर वक्त ऐसा लगता है कि उसे कोई एसएमएस नहीं करता है और ना ही वो किसी को एसएमएस कर पा रहा है। इन दोनों ही मामलों में मरीज़ भावनात्मक तौर पर खुद को अकेला पाता है और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। जबकि पोस्ट ट्रॉमैटिक टेक्स्ट डिसऑर्डर के मामले में मरीज को शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मसलन मरीज एसएमएस करते वक्त उस भावना को जीने लगता है और हकीकत का एहसास होते ही खुद को अकेला पाता है।



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अन्य ग्रहों के प्राणी से होगी मुठभेड़

रूसी वैज्ञानिकों ने संभावना व्यक्त की है कि बार-बार धरती पर दस्तक देकर एक रहस्य छोड जाने वाले बाहरी ग्रह के प्राणियों से 2031 तक पृथ्वी पर मनुष्य की सीधी मुठभेड हो जाएगी। रूस की सरकारी संवाद समिति इंटरफैक्स ने रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष संस्थान के एक शीर्ष वैज्ञानिक के हवाले से खबर दी है कि पृथ्वी से इतर अन्य ग्रहों पर निश्चित रूप से जीवन है और संभावना है कि धरती के मनुष्य का अगले दो दशकों में उन प्राणियों से आमना सामना हो जाएगा।
ज्ञातव्य है कि आकाशगंगा में हमारे सौरमंडल के अतिरिक्त भी अनगिरत सौरमंडलों है जिनके अपने अपने सूर्य है।
अंतरिक्ष संस्थान के निदेशक एवं प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक एंडी पिंकेलस्तीन ने कहा कि इन बाहरी सौरमंडलों में अपने अपने सूर्य की परिक्रमा करने वाले ज्ञात ग्रहों में से 10 प्रतिशत पृथ्वी जैसे ही है। उन्होंने कहा कि यदि उन ग्रहों पर पानी है तो फिर वहां जीवन होने की पूरी-पूरी संभावना है।
उनका कहना है कि बाहरी ग्रहों के प्राणियों के भी पृथ्वी के मनुष्य की तरह ही दो हाथ दो पांव और एक सिर है। उन्होंने कहाकि हो सकता है कि उनकी चमडी का रंग अलग हो लेकिन इस तरह की विविधता तो पृथ्वी के मनुष्यों में भी विद्यमान रहती ही है। उन्होंने कहा कि उनका संस्थान अन्य ग्रहों पर जीवन की मौजूदगी का पता लगाने के काम में पूरी तरह से जुटा हुआ है और अगले 20 वर्षो में यह रहस्य पूरी तरह से खुल जाने की संभावना है|

 http://www.arthmedianetwork.com/images/newsimages/9/img_3_img_26218.jpg 



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कैसे काम करता है परमाणु संयंत्र

जापान में हुई प्राकृतिक आपदा के बाद नाभिकीय ऊर्जा के लिए बनाए जा रहे परमाणु संयंत्रो में हुए रेडिएशन लीक के खतरे ने सभी का ध्यान अपनी और खींचा है। सभी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर परमाणु संयंत्र काम कैसे करते हैं।

नाभिकीय उर्जा बनाने के लिए परमाणु संयंत्र के रिएक्टर में लगी फ्युल रॉड्स विखंडन से प्लांट में भारी मात्रा में उष्मा पैदा की जाती है। फिर इस उष्मा से वॉटर रिएक्टर में इकट्ठा किए गए पानी को गर्म किया जाता है। इस के जरिए पानी को क्वथनांक तक गर्म कर भाप उत्पन्न की जाती है। इस भाप को प्लांट से टर्बाइन तक पाइपों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। इस भाप की ताकत से टरबाइन को घुमाया जाता है जिससे बिजली पैदा होती है। पर इस प्रकिया में परमाणु विखंडन को नियंत्रित करने के लिए या तापमान को नियंत्रित करने के लिए फ्युल रॉड्स के बीच कंट्रोल रॉड्स डाली जाती हैं। कंट्रोलिंग रॉड्स ऐसे पदार्थों से बनी होती है जो विखंडन प्रक्रिया में मुक्त हुए अतिरिक्त न्यूट्रॉन को तुरंत अवशोषित कर लेते हैं।
इसके साथ ही गर्म पानी को शक्तिशाली पम्प के जरिए लगातार बाहर निकाला जाता है और ताजा व ठंडा पानी कोर रिएक्टर में सप्लाय किया जाता है। बची हुई भाप कूलिंग टॉवर के जरिए बाहर निकल जाती है। ताजे पानी की सतत सप्लाय तथा कंट्रोलिंग रॉड्स से रिएक्टर का तापमान नियंत्रण में रखा जाता है। यह रिएक्टर की कूलिंग प्रणाली होती है। इस पूरे प्लांट को बेहद मजबूत कांक़्रीट की दीवार के भीतर रखा जाता है।

किसी दुर्घटना और अन्य कारण से अगर संयंत्र की बिजली आपूर्ति बाधित होती है, तो कूलिंग प्रणाली के ठप्प होने से तापमान अनियंत्रित हो जाता है। परिणाम यह होता है कि फ्युल रॉड्स में अनियंत्रित विखंडन से उत्पन्न अत्यधिक तापमान की वजह से रिएक्टर पिघलना शुरू हो जाता है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से उच्च दाब के कारण प्लांट में शक्तिशाली धमाका होता है जो रेडियोधर्मी विकिरण को दूर तक वातावरण में फैला देता है।



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अमर हो जाएगी मनुष्य जाति ????????

टाइम पत्रिका के ताजा अंक में कवर स्टोरी के रूप में यह बात विविध वैज्ञानिक अनुसंधानों, पिछले इतिहास और आगे की संभावनाओं की पड़ताल करने के बाद कही गई है। मनुष्यत्व को सिंगुलेरिटी जैसी अवधारणा को प्राप्त करने में बस कुछ ही दशक शेष हैं! सिंगुलेरिटी उस स्थिति को कहते हैं जहाँ आम भौतिकी के नियम लागू नहीं होते, जैसे कि ब्लैक होल में।
वैज्ञानिक रेमंड कुर्जवेल, जिनके खाते में 39 पेटेंट हैं, 19 ऑनरेरी डॉक्टरेट, 1999 के यूएसए नेशनल टेक्नोलॉजी मैडल से पुरस्कृत हैं, अपनी किताब ‘द सिंगुलेरिटी इज नियर’ में कुछ इसी तरह की बात कहते हैं। वे पिछले 20 वर्षो से वैज्ञानिक के साथ-साथ वैज्ञानिक-भविष्यवेत्ता को करियर के रूप में अपनाए हुए हैं और उनकी कई भविष्यवाणियाँ समय के साथ सटीक बैठी हैं।
कंप्यूटिंग भविष्यवाणियाँ
कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी को लेकर रेमंड कुर्जवेल की कुछ दिलचस्प भविष्यवाणियाँ हैं।
- 2015 में कंप्यूटरों में चूहे के मस्तिष्क के जितनी क्षमता आ जाएगी।
- 2023 में कंप्यूटरों में मनुष्य के दिमाग जितनी कृत्रिम बुद्धि विकसित हो जाएगी।
- 2045 में कंप्यूटरों में तमाम विश्व के समस्त मानवों के मस्तिष्क की क्षमताओं के सम्मिलित क्षमता जितनी ताकत आ जाएगी और तब, मशीनें क्या कुछ करेंगी, सोचें! दरअसल, इस भविष्यवाणी के पीछे टेक्नोलॉजी की अब तक की चाल के इतिहास का गहरा अध्ययन रहा है। कंप्यूटिंग पावर आज की स्थिति में हर घंटे उतनी तेजी से बढ़ रहा है जितनी कि यह अपने शुरुआती समस्त 90 वषों में बढ़ा है। दूसरे शब्दों में, पिछली सदी भर की समस्त कंप्यूटिंग ताकत को हम आज महज एक घंटे में पा ले रहे हैं और यह ताकत बढ़ रही है।
अमरत्व का प्रथम पग:-रेमंड कुर्जवेल अभी 62 वर्ष के हैं और उनका मानना है कि वे बायोलॉजिकली, 20 वर्ष छोटे हैं यानी उनकी शारीरिक अवस्था, शारीरिक अंगों-अवयवों की क्षमता और अवस्था सिर्फ 42 वर्ष के व्यक्ति जितनी ही है। उनके जीन में जन्मजात डायबिटीज टाइप 2 के अवयव थे, परंतु 62 वर्ष की उम्र में उनमें डायबिटीज के लक्षण नहीं हैं। वे दीर्घायु देने वाली दवाइयों के विशेषज्ञ टैरी ग्रासमैन के साथ काम कर रहे हैं और विशेष सप्लीमेंट युक्त आहार और दवाइयां ले रहे हैं।
इधर शोधकर्ताओं ने टेलोमीरास नामक एक एंजाइम का पता लगाया है जो मनुष्यों में बुढ़ापे की प्रक्रिया को लगाम लगाता है। हारवर्ड मेडिकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने बूढ़े चूहों को यह एंजाइम दिया तो चूहों में न सिर्फ बुढ़ापे की रफ्तार रुकी बल्कि कुछ मायनों में बुढ़ापे की बयार उलटी चली और चूहे अपेक्षाकृत युवा हो गए और, जाहिर है, अब प्रयोग की बारी मनुष्यों की है।
कृत्रिम अंग:-अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी के प्रयोग से मनुष्य के जीवन के महत्वपूर्ण अंगों, मसलन हृदय और किडनी के कृत्रिम, मशीनी रूप बना पाने में सफलता हासिल हो चुकी है। स्टेम सेल थेरेपी से मनुष्य के मर चुके या खराब हो चुके अंगों में नवजीवन देने की चिकित्सकीय पद्धति हाल में प्रकाश में आई और चहुँओर इनमें नए-नए आयाम प्राप्त होने की खबरें मिल रही हैं। इस तरह से मनुष्य के थके, बूढ़े हो रहे अंगों में स्टेम सेल चिकित्सा पद्धति से नया जीवन भर उनमें नवजीवन प्रदान कर अथवा मशीनी कृत्रिम अंगों की सहायता से मनुष्य की आयु को अकल्पनीय रूप से लंबा खींचा जा सकेगा।
विरोध के स्वर:-मनुष्य के अमरत्व की अवधारणा आसानी से पचती नहीं। जीवविज्ञानी डेनिस ब्रे का कहना है कि जीवों की कोशिकाओं में वातावरण के लिहाज से बदलने की अपार संभावनाएं होती हैं। भविष्य के लिहाज से अपने आप को तैयार करने में वे पूरी तरह से सक्षम होती हैं और इससे संबंधित जानकारियों को अपने में समेटने की भी अपार, अनंत क्षमता होती है। हर जीवित वस्तु का एक जीवन चक्र होता है।
अमरत्व की ओर पहला कदम:-जो भी हो, जैसे जैसे मनुष्य सभ्य होता गया है, दीर्घायु होता गया है। मनुष्य के पास स्वास्थ्य, स्वच्छता, रहनसहन की जैसे-जैसे तमाम सुविधाएं जुड़ती गई हैं, उसकी आयु बढ़ती गई है। वर्ष 1900 के दौरान मनुष्य की वैश्विक औसत आयु (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) मात्र 30 वर्ष थी, जो आज 64 वर्ष तक पहुँच गई है। यह भी एक तरह का अमरत्व नहीं तो और क्या है।



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वर्ल्ड का सबसे छोटा कंप्यूटर

आखिरकार वैज्ञानिकों ने दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर बनाकर ही दम लिया। एक स्कवेयर मिलीमीटर का यह कंप्यूटर इतना छोटा है कि आंख की पुतली में समा जाएगा। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशीगन के वैज्ञानिकों की टीम ने यह यंत्र ग्लोकोमा के इलाज के लिए विकसित किया है।
आंख की पुतली में यह मॉनिटर फिट करने के बाद यह खुद बीमारी का इलाज करना शुरू कर देगा। इतना छोटे से इस सिस्टम में अल्ट्रा लो पावर माइक्रोप्रोसेसर, प्रैशर सेंसर, थिन फिल्म बैटरी भी लगी हुई है। यही नहीं सोलर सैल तथा एंटिना सहित वायरलेस रेडियो भी इसमें समाया हुआ है जिसकी मदद से पूरा डाटा बाहर लगे रीडर डिवाइस में ट्रांसफर होगा। इसके निर्माता डेनिस सिवेस्टर डेविड ब्लो तथा डेविड वेंट्जलोफ का दावा है कि इस यंत्र में लगे रेडियो को सही फ्रीक्वेंसी तलाश करने के लिए ट्यूनिंग की जरूरत नहीं पड़ेगी। प्रो. सिलवेस्टर के मुताबिक जल्द ही मिनी यंत्र भी बनाए जाएंगे जो प्रदूषण चैक करेंगे और जांच व निगरानी के लिए काम आएंगे।



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स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टमों की जानकारी

हम कई बार स्मार्टफोन शब्द पढ़ते हैं। आम आदमी स्मार्टफोन का अर्थ अधिक फीचर वाला फोन समझता है जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है। स्मार्टफोन किसी हाइ-ऍण्ड मोबाइल फोन को कहा जाता है। एक ऐसा बड़ी कलर स्क्रीन वाला मोबाइल फोन जिसमें कम्प्यूटर जैसी उच्चस्तरीय क्षमतायें एवं उन्नत फीचर हों तथा एक सुपरिभाषित (वैल डिफाइंड) ऑपरेटिंग सिस्टम हो। स्मार्टफोन हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर दोनों ही स्तर पर बेसिक फोन से उन्नत होता है। हार्डवेयर की दृष्टि से इसमें मेमोरी कार्ड, कैमरा, ब्ल्यूटुथ जैसे सामान्य फीचर तो होते हैं ही साथ में तेज प्रोसैसर, अधिक रैम, हाइ रिजॉल्यूशन डिस्पले, जीपीऍस नेवीगेशन तथा मोशन सेंसर जैसी आधुनिक फीचर भी होते हैं। सॉफ्टवेयर के मामले में जहाँ इसमें कम्प्यूटर की तरह एक ऑपरेटिंग सिस्टम होता है वहीं इसके फंक्शनों को ऍप्लिकेशनों की सहायता से बढ़ाया जा सकता है।


आजकल अधिकतर स्मार्टफोन टचस्क्रीन युक्त होते हैं। टचस्क्रीन फोन वेब सर्फिंग के लिये बेहतर होते हैं साथ ही बड़ी स्क्रीन के कारण वीडियो प्लेबैक भी बेहतर होता है। अधिकतर नये स्मार्टफोन 3जी सुविधायुक्त होते हैं जिसके द्वारा उनमें तेज गति इण्टरनेट तथा वीडियो कॉल/चैट आदि का आनन्द लिया जा सकता है। आजकल ऍण्ड्रॉइड स्मार्टफोनों तथा आइफोन के बीच कड़ी प्रतिद्वन्दिता है। ऍण्ड्रॉइड में सैमसंग के मॉडल सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। सैमसंग गैलैक्सी ऍस 2 उस समय  ( 2011 ) का आधुनिकतम एवं सबसे उन्नत स्मार्टफोन है जो कि ऍपल के आइफोन 4 को कड़ी टक्कर दे रहा था।

प्रचालन तन्त्र (ऑपरेटिंग सिस्टम)
किसी भी कम्प्यूटिंग डिवाइस के कार्य करने के लिये उसमें एक सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म चाहिये होता है जिसे प्रचालन तन्त्र (ऑपरेटिंग सिस्टम) कहते हैं। स्मार्टफोन में मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। वैसे तो कई स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम हैं लेकिन हम कुछ मुख्य सिस्टमों की ही बात करेंगे। वर्तमान में प्रचलित कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम निम्नलिखित हैं।


सिम्बियन
सिम्बियन आरम्भिक समय के ऑपरेटिंग सिस्टमों में से है। यह सिम्बियन लिमिटेड द्वारा शुरु किया गया था जिसे 2008  में नोकिया ने अधिगृहीत कर लिया तथा उसने 2009 में सिम्बियन फाउण्डेशन नामक गैर-लाभकारी संगठन बनाया जिसका काम सिम्बियन प्लेटफॉर्म का विकास था। यह कुछ समय पहले तक सबसे लोकप्रिय स्मार्टफोन ऑपरेटिंग सिस्टम था। नोकिया, सैमसंग तथा ऍलजी आदि के स्मार्टफोनों में जहाँ इसका S60 नामक यूजर इण्टरफेस प्रयुक्त होता था वहीं सोनी ऍरिक्सन वालों में UIQ, पहले सिम्बियन बटनों वाले फोन हेतु डिजाइन किया गया था बाद में S60 v5 के बाद टचस्क्रीन के लिये बने इण्टरफेस आये। बाद में सिम्बियन ओऍस तथा ऍस६० के आधार पर सिम्बियन प्लेटफॉर्म का निर्माण हुआ।

नोकिया के सिम्बियन युक्त स्मार्टफोन सबसे लोकप्रिय थे। ऍण्ड्रॉइड नामक नये मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम के आने पर धीरे-धीरे सैमसंग, ऍलजी आदि ने सिम्बियन को छोड़ दिया। कुछ समय पहले तक सिम्बियन सर्वाधिक प्रचलित स्मार्टफोन ओऍस था। एक समय यह सबसे ऍडवांस स्मार्टफोन ओऍस था परन्तु टचस्क्रीन यूजर इण्टरफेसों के आने पर विशेषकर आइओऍस तथा ऍण्ड्रॉइड की सफलता ने इसे आउटडेटिड बना दिया।

फरवरी 2011 में सिम्बियन युक्त स्मार्टफोन बनाने वाली अन्तिम कम्पनी नोकिया ने भी माइक्रोसॉफ्ट से गठबन्धन कर लिया तथा 2012 से वह सिम्बियन वाले हैण्डसैट बनाने बन्द कर देगा। आगे से वह माइक्रोसॉफ्ट के विण्डोज़ फोन नामक ऑपरेटिंग सिस्टम युक्त स्मार्टफोन बनायेगा। इस प्रकार सिम्बियन का स्मार्टफोन के रुप में भविष्य समाप्त हो चुका है।

सिम्बियन ऑपरेटिंग सिस्टमों के कुछ संस्करणों में आंशिक हिन्दी प्रदर्शन समर्थन है।


विण्डोज़ मोबाइल/विण्डोज़ फोन
विण्डोज़ मोबाइल माइक्रोसॉफ्ट का मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम है। इसका पहला संस्करण लगभग 2000 में आया। इस ओऍस युक्त हैण्डसैट बनाने वाली कम्पनियों में ऍचटीसी, आइमेट, सैमसंग, ऍलजी आदि शामिल थी। यह ऑपरेटिंग सिस्टम सिम्बियन के समान्तर चलता रहा पर उसकी तरह मुख्यधारा का ओऍस कभी न बन पाया। इसके पुराने संस्करणों का इण्टरफेस तथा फीचर विण्डोज़ के डैस्कटॉप संस्करण जैसी थी जिसमें नोटपैड, वर्ड तथा इण्टरनेट ऍक्सप्लोरर जैसे अनुप्रयोग मौजूद थे। इन कारणों से यह उस समय गीकों का प्रिय स्मार्टफोन ओऍस था। बाद में विण्डोज़ मोबाइल की लोकप्रियता एवं मार्केट शेयर साल दर साल घटता गया।

इसके संस्करण 4, 6.0 था 6.1 में हिन्दी समर्थन हेतु आयरॉन्स हिन्दी सपोर्ट नामक एक टूल उपलब्ध है जिसमें हिन्दी कीबोर्ड भी शामिल है।

2010 में जारी हुये संस्करण ७ से माइक्रोसॉफ्ट ने अपने मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम को नये सिरे से बनाया तथा इसका नाम बदलकर “विण्डोज़ फोन” कर दिया। इसके इण्टरफेस में भी आमूल-चूल परिवर्तन किया गया तथा मैट्रो यूआइ नामक नया यूजर इण्टरफेस आया। विण्डोज़ मोबाइल के लिये बने सॉफ्टवेयर इसमें नहीं चलते। इस दौरान आइफोन तथा ऍण्ड्रॉइड छा चुके थे। विण्डोज़ फोन अभी अपना स्थान बनाने के लिये संघर्ष कर रहा है।
विण्डोज़ फोन में हिन्दी समर्थन नहीं है।


आइओऍस
आइओऍस ऍपल के आइफोन नामक स्मार्टफोन में प्रयुक्त होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह २००७ में आइफोन के साथ जारी हुआ। इसका आरम्भिक नाम आइफोन ओऍस था जो कि मैक ओऍस से निकला था। आइफोन को टचस्क्रीन स्मार्टफोनों का दौर लाने के लिये जाना जाता है। आइफोन ओऍस अपने सरल, यूजर फ्रेंडली इण्टरफेस तथा ऍप्लिकेशनों की प्रचुरता के चलते लोकप्रिय हुआ। बाद में ऍपल के ही उत्पाद आइपैड ने टैबलेट कम्प्यूटरों (स्लेट) का दौर चलाया। आइपैड के अलावा यह ओऍस ऍपल के आइपॉड टच नामक म्यूजिक प्लेयर में भी प्रयुक्त होता है इसलिये ऍपल ने कुछ समय बाद जून 2010 में इसका नाम बदलकर आइओऍस कर दिया। ऍपल के आइओऍस युक्त उत्पादों को आइओऍस डिवाइस कह दिया जाता है। यद्यपि आइओऍस में तथा इसके डिवाइसों में कुछ कमियाँ हैं (खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में) परन्तु इण्टरफेस, ऍप्लिकेशनों तथा ऍपल की हाइप के चलते ये डिवाइस काफी लोकप्रिय हैं। आइओऍस केवल ऍपल के उत्पादों में ही प्रयुक्त होता है। पहले आइओऍस में थर्ड पार्टी ऍप्लिकेशन का आधिकारिक समर्थन नहीं था, उस समय जेलब्रेकिंग के जरिये इसमें थर्ड पार्टी ऍप्स इंस्टाल की जाती थी।

आइओऍस की एक अच्छी बात ये है कि इसमें हिन्दी प्रदर्शन का पूर्ण समर्थन है। हिन्दी लिखने के लिये कुछ कामचलाऊ औजार हैं पर पूर्ण हिन्दी कीबोर्ड नहीं है।


ऍण्ड्रॉइड
अक्तूबर 2003 में ऍण्डी रुबिन द्वारा ऍण्ड्रॉइड इंक॰ की स्थापना की गयी थी जिसे अगस्त 2004 में गूगल द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया। नवम्बर 2007 में गूगल ने ओपन हैण्डसैट अलायंस बनाया जिसकी देख-रेख में ऍण्ड्रॉइड का विकास चल रहा है। ऍण्ड्रॉइड लिनक्स कर्नल पर आधारित है। इसके मुक्त स्रोत होने के चलते सैमसंग, ऍलजी, मोटोरोला आदि सहित बहुत सी कम्पनियाँ ऍण्ड्रॉइड स्मार्टफोन बना रही हैं। टैबलेट कम्प्यूटरों का दौर चलने के बाद शुरु में फोन वाला ओऍस ही उनमें प्रयुक्त हुआ पर बाद में टैबलेट के लिये हनीकॉम्ब नामक अलग से संस्करण निकाला गया जिसका इण्टरफेस बड़ी स्क्रीन के हिसाब से बनाया गया है। ऍप्लिकेशनों की संख्या भी बढ़ती जा रही है तथा आइओऍस के बाद यह दूसरे क्रमांक पर है। ऍण्ड्रॉइड आइओऍस को कड़ी टक्कर दे रहा है। वर्तमान में ऍण्ड्रॉइड सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला स्मार्टफोन ओऍस है। ऍण्ड्रॉइड में हनीकॉम्ब वाले संस्करण मुक्त स्रोत नहीं हैं।

ऍण्ड्रॉइड में अभी तक हिन्दी प्रदर्शन समर्थन नहीं है। यद्यपि सैमसंग के गैलैक्सी सीरीज तथा सोनी ऍरिक्सन के ऍक्सपेरिया सीरीज के ऍण्ड्रॉइड 2.2 (फ्रोयो) युक्त फोनों में हिन्दी समर्थन पाया गया था परन्तु नये संस्करणों 2.3.x (जिंजरब्रैड) तथा टैबलेट वाले संस्करणों 3.x (हनीकॉम्ब) में यह जाता रहा। यद्यपि ऍण्ड्रॉइड मार्केट में हिन्दी कीबोर्ड उपलब्ध है परन्तु हिन्दी प्रदर्शन न होने से बात नहीं बनती।



ब्लैकबेरी ओऍस
ब्लैकबेरी ओऍस कनाडा की RIM (रिसर्च इन मोशन) कम्पनी के ब्लैकबेरी फोनों में प्रयुक्त होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम है। ब्लैकबेरी फोन नेटिव कॉर्पोरेट ईमेल जैसी व्यावसायिक खूबियों के लिये जाने जाते रहे हैं तथा एक वर्ग विशेष की पसन्द रहे हैं। इनकी एक पहचान क्वर्टी कीपैड रहा है यद्यपि अब इनमें भी टचस्क्रीन स्मार्टफोन आ गये हैं। यह ओऍस भी केवल रिम के फोनों में ही उपयोग होता है। यह मूल रुप से बिजनेस केन्द्रित ओऍस था। बाद में इसमें मल्टीमीडिया फीचर जोड़ी गयीं। सितम्बर 2010 में रिम ने टैबलेट कम्प्यूटरों के लिये ब्लैकबेरी टैबलेट ओऍस बनाया।

ब्लैकबेरी ओऍस के नये संस्करणों में हिन्दी प्रदर्शन समर्थन है तथा टचस्क्रीन वाले फोनों हेतु हिन्दी का वर्चुअल कीबोर्ड भी है।

इसके अलावा भी कुछ और मोबाइल फोन ऑपरेटिंग सिस्टम हैं जैसे नोकिया/इंटैल का माइमो/मीगो, सैमसंग का बडा, ऍचपी का वेबओऍस (जो कि उसने पाम से खरीदा)। ऍण्ड्रॉइड, बडा, वेबओऍस तथा माइमो/मीगो लिनक्स पर आधारित हैं जबकि आइओऍस की जड़ें यूनिक्स में हैं।



ऍप स्टोर (ऍप्लिकेशन स्टोर)
ऍप्लिकेशन स्टोर स्मार्टफोनों हेतु एक ऑनलाइन डिजिटल ऍप्लिकेशन वितरण प्लेटफॉर्म होता है। इसके लिये फोन में एक ऍप्लिकेशन अन्तर्निर्मित होती है जिसके माध्यम से प्रयोक्ता ऍप्लिकेशनों को ब्राउज, डाउनलोड तथा इंस्टाल कर सकते हैं। ऍप्लिकेशन स्टोर का विचार सबके पहले ऍपल द्वारा आइफोन के लिये जुलाई 2008 में लाया गया था तथा उस समय “ऍप स्टोर” शब्द इसी के लिये रुढ़ था। बाद में ऍपल के ऍप स्टोर की सफलता तथा अन्य मोबाइल प्लेटफॉर्मों हेतु ऐसी ही सेवाओं के आने पर ऍप स्टोर टर्म इस प्रकार की अन्य सेवाओं हेतु भी प्रयोग होने लगी। हालाँकि ऍपल ने 2008 में ऍप स्टोर शब्द पर ट्रेडमार्क हेतु आवेदन किया जो कि 2011 में स्वीकृत भी हो गया ।





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