कैसे काम करता है परमाणु संयंत्र

जापान में हुई प्राकृतिक आपदा के बाद नाभिकीय ऊर्जा के लिए बनाए जा रहे परमाणु संयंत्रो में हुए रेडिएशन लीक के खतरे ने सभी का ध्यान अपनी और खींचा है। सभी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर परमाणु संयंत्र काम कैसे करते हैं।

नाभिकीय उर्जा बनाने के लिए परमाणु संयंत्र के रिएक्टर में लगी फ्युल रॉड्स विखंडन से प्लांट में भारी मात्रा में उष्मा पैदा की जाती है। फिर इस उष्मा से वॉटर रिएक्टर में इकट्ठा किए गए पानी को गर्म किया जाता है। इस के जरिए पानी को क्वथनांक तक गर्म कर भाप उत्पन्न की जाती है। इस भाप को प्लांट से टर्बाइन तक पाइपों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। इस भाप की ताकत से टरबाइन को घुमाया जाता है जिससे बिजली पैदा होती है। पर इस प्रकिया में परमाणु विखंडन को नियंत्रित करने के लिए या तापमान को नियंत्रित करने के लिए फ्युल रॉड्स के बीच कंट्रोल रॉड्स डाली जाती हैं। कंट्रोलिंग रॉड्स ऐसे पदार्थों से बनी होती है जो विखंडन प्रक्रिया में मुक्त हुए अतिरिक्त न्यूट्रॉन को तुरंत अवशोषित कर लेते हैं।
इसके साथ ही गर्म पानी को शक्तिशाली पम्प के जरिए लगातार बाहर निकाला जाता है और ताजा व ठंडा पानी कोर रिएक्टर में सप्लाय किया जाता है। बची हुई भाप कूलिंग टॉवर के जरिए बाहर निकल जाती है। ताजे पानी की सतत सप्लाय तथा कंट्रोलिंग रॉड्स से रिएक्टर का तापमान नियंत्रण में रखा जाता है। यह रिएक्टर की कूलिंग प्रणाली होती है। इस पूरे प्लांट को बेहद मजबूत कांक़्रीट की दीवार के भीतर रखा जाता है।

किसी दुर्घटना और अन्य कारण से अगर संयंत्र की बिजली आपूर्ति बाधित होती है, तो कूलिंग प्रणाली के ठप्प होने से तापमान अनियंत्रित हो जाता है। परिणाम यह होता है कि फ्युल रॉड्स में अनियंत्रित विखंडन से उत्पन्न अत्यधिक तापमान की वजह से रिएक्टर पिघलना शुरू हो जाता है। हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण से उच्च दाब के कारण प्लांट में शक्तिशाली धमाका होता है जो रेडियोधर्मी विकिरण को दूर तक वातावरण में फैला देता है।



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